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Gujarat Election: ‘निष्कलंक’ क्यों कहे जाते हैं ये मंदिर? सांप्रदायिकता के दौर में दिखाते हैं समरसता की राह

Gujarat Election: 'निष्कलंक' क्यों कहे जाते हैं ये मंदिर? सांप्रदायिकता के दौर में दिखाते हैं समरसता की राह

Gujarat Election: ‘निष्कलंक’ क्यों कहे जाते हैं ये मंदिर? सांप्रदायिकता के दौर में दिखाते हैं समरसता की राह जिस दौर में देश के अलग-अलग हिस्सों से सांप्रदायिकता की खबरें लोगों को बेचैन कर देती हैं, उसी दौर में इस देश के कुछ आध्यात्मिक केंद्र ऐसे भी हैं, जो लोगों को जीवन का असली महत्व बताते हैं और समाज को समरसता की राह दिखाते हैं।

इन्हीं में से एक आध्यात्मिक केंद्र है सतपंथ संप्रदाय के निष्कलंक मंदिर, जहां पूरी दुनिया को एक नई दृष्टि से देखा जाता है और सबसे आपसी प्यार-व्यवहार बनाकर रखने की सीख दी जाती है। विशेष बात है कि हिंदू होने के बाद भी इस पंथ के अनुयायियों में इस्लाम धर्म का असर भी साफ दिखाई पड़ता है, जो बताता है कि यह समुदाय कभी इस्लामी शासन के प्रभाव में आ गया होगा।

ज्यादातर अनुयायी ‘शेख पटेल’

सतपंथ संप्रदाय के ज्यादातर अनुयायी ‘शेख पटेल’ समुदाय से होते हैं। इस शब्द से गुजरात के ताकतवर पटेल समुदाय के कुछ लोगों के इस्लामी शासन के करीब हो जाने का पता चलता है। हालांकि, शेख पटेल अभी भी स्वयं को हिंदू समुदाय के रूप में ही पेश करते हैं। लेकिन इस समुदाय के लोगों की मौत होने के बाद उन्हें जलाया नहीं जाता, बल्कि उन्हें मुस्लिम समुदाय के लोगों की तरह जमीन में दफनाया जाता है। कुछ जगहों पर समाधियां भी बन जाती हैं, जिस पर लोग पूजा करने आते हैं। इन समाधियों पर पूजा करने वाले लोगों में मुसलमान समुदाय के लोग भी होते हैं।

अमावस के बाद की पहली तिथि पर इस संप्रदाय के लोग दिन भर व्रत रखते हैं और शाम होने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस्लाम में भी इसी तरह रोजे के दौरान दिनभर उपवास के बाद सूरज ढलने के बाद ही कुछ खाया जाता है। इस प्रकार इस संदर्भ में भी दोनों संप्रदायों में कुछ समानता देखने को मिलती है। हालांकि, इस्लाम में रोजे के दिनों में भी सूर्योदय के पूर्व कुछ खा-पी लेने की परंपरा सतपंथ संप्रदाय के लोगों में नहीं देखी जाती।

भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की करते हैं पूजा

वड़ोदा के विरोद गांव में स्थित निष्कलंक मंदिर के ट्रस्टी संजय के. पटेल बताते हैं कि उनके पंथ का मानना है कि इस युग में लोगों को उनकी मौत के बाद उन्हें जलाने या जल समाधि देने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें दफनाया जाना चाहिए। शव को जलाने या जल समाधि लेने को वे पिछले युगों का चलन मानते हैं, जिसकी इस युग में आवश्यकता नहीं है। यह पंथ विष्णु भगवान के उस रूप की पूजा करता है, जिसका अवतार अभी होना अभी शेष है। इस अवतार को कुछ लोग कल्कि अवतार के नाम से भी जानते हैं। चूंकि, इस अवतार में भगवान विष्णु का पूर्ण अवतार होगा और उसमें कोई कमी नहीं होगी, इसलिए इन मंदिरों को ‘निष्कलंक मंदिर’ कहा जाता है।

संजय भाई के मुताबिक सतपंथ संप्रदाय के शेख पटेल लोग भारी संख्या में कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, फिजी और अन्य देशों में फैले हुए हैं और आर्थिक दृष्टि से काफी संपन्न हैं। गांवों में भी उन्होंने अपने करीबियों को अपने आवास और खेती-बाड़ी सौंप रखी है। लेकिन अपने पंथ की परंपराओं के प्रति वे आज भी बेहद सतर्क हैं और उसे हर हाल में बनाए रखने की कोशिश करते हैं। विशेष धार्मिक जलसों में शामिल होने के लिए लोग विदेशों से भी आते हैं, जो उन्हें आज भी अपने गांव की मिट्टी से जोड़े हुए है।

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