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Valentine Day 2021:इन चुनिंदा प्रेम कविताओं के साथ इस वैलेंटाइन डे को और बनाएं खास

Valentine Day 2021: वैसे तो प्रेम के लिए कोई दिन तय नहीं है, लेकिन आज जब जिंदगी की भागदौड़ में हमारे पास समय नहीं है, तो प्रेम के लिए कोई एक पल, एक दिन भी मिल जाए तो काफी लगता है. वैलेंटाइन डे ऐसा ही एक खूबसूरत, प्रेम से भरा दिन है. इस दिन अपनों से प्रेम जताया जाता है, इसे कई तरीकों से व्‍यक्‍त किया जाता है. शब्‍द प्रेम को व्‍यक्‍त करने का खूबसूरत जरिया होते हैं. ऐसे में इस वैलेंटाइन डे पर हम भी आपके लिए लाए हैं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, हिंदी के महान कवि हरिवंशराय बच्चन और प्रतिभावान कवयित्री महादेवी वर्मा की चुनिंदा प्रेम भरी कविताएं. इनके मखमली शब्‍द कानों में प्रेम का रस घोलेंगे और आपके दिन को और खास बना देंगे…

दोनों ओर प्रेम पलता है (मैथिलीशरण गुप्त)

दोनों ओर प्रेम पलता है सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!

सीस हिलाकर दीपक कहता

‘बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’

पर पतंग पड़ कर ही रहता

कितनी विह्वलता है!

दोनों ओर प्रेम पलता है।

बचकर हाय! पतंग मरे क्या?

प्रणय छोड़ कर प्राण धरे क्या?

जले नही तो मरा करे क्या?

क्या यह असफलता है!

दोनों ओर प्रेम पलता है।

कहता है पतंग मन मारे

‘तुम महान, मैं लघु, पर प्यारे,

क्या न मरण भी हाथ हमारे?

शरण किसे छलता है?’

दोनों ओर प्रेम पलता है।

दीपक के जलने में आली,

फिर भी है जीवन की लाली।

किन्तु पतंग-भाग्य-लिपि काली,

किसका वश चलता है?

दोनों ओर प्रेम पलता है।

जगती वणिग्वृत्ति है रखती,

उसे चाहती जिससे चखती,

काम नहीं, परिणाम निरखती।

मुझको ही खलता है।

दोनों ओर प्रेम पलता है

2.

बात सिर्फ इतनी सी है तो क्यूँ है
उसे नहीं मुझसे मुहब्बत, मुझे अब तक क्यूँ है।।

हज़ारो जख्म है मुझमे जो उसकी निशानी है,
मुझे उसकी फिर भी ज़रुरत क्यूँ है
बात सिर्फ इतनी सी है तो क्यूँ है
उसे नहीं मुझसे मुहब्बत, मुझे अब तक क्यूँ है।।

वो जहाँ है वहां खुश है,
मुझे फिर भी उसकी इतनी फिकर क्यूँ है।।
बात सिर्फ इतनी सी है तो क्यूँ है
उसे नहीं मुझसे मुहब्बत, मुझे अब तक क्यूँ है।।

नहीं शामिल मैं उसकी आरजू में,
मेरे हाँथो में फिर उसकी लकीर क्यूँ है।।
बात सिर्फ इतनी सी है तो क्यूँ है
उसे नहीं मुझसे मुहब्बत, मुझे अब तक क्यूँ है।।

3.ज़िक्र तेरा मेरी बातों में होने लगा है
तेरा हर ख्वाब आँखों में रहने लगा है
सोचते हैं हर पल बस अब तेरे ही बारे में
कैसे कहूँ मुझे इश्क़ अब तुझसे होने लगा है
जब देखे वो मुझे आँखें भी मानो शर्मा सी जाती हैं
मेरी हर अदा पर उसका जैसे पहरा सा रहने लगा है
देखूं जब भी आईना मैं अक्स उसका मुझमें दिखने लगा है
रहती हूँ हर वक़्त बस उसके ही ख्यालों में और दिल भी अजब सा धड़कने लगा है

4.तुम्हें पता है कौन हो तुम
मेरे जिंदगी की अनछुई परछाई हो तुम
समझता मैं भी अजनबी था तुझे,
मिला मुझे खुद का पता जब न था,
मिली जब पनाह तेरे प्यार की,
छोड़ हक़ीक़त सपनों में खो गया,
मिला तेरा साथ तो अपनों का हो गया,
बिताये हर एक पल ग़मों से दूर रहा मैं,
रहता जिस गुरुर में था मैं,
उससे दूर रहा मैं,
मुझे नहीं पता क्या सीखा तुमने मुझसे,
मगर इस दिल ने सीखा बहुत तुझसे,
सपनों की हक़ीक़त,
हक़ीक़त का टूटना,
ज़िन्दगी की सच्चाई,
और दिल का रूठना,
अब इससे ज़्यादा क्या बताये ये दिल
प्यार और इबादत की तालीम हो तुम
आज जाना मेरी अधूरी जिंदगी में मीठा सवाब हो तुम,
इस दिल की नहीं तुम,
ऊपर वाले की प्यारी रचना हो तुम,
ये तारीफ नहीं जुबां की,
बस वाक्या है मेरे दिल का,
रहे मेरे पास शायद वजह यही है मेरे सिर झुकाने की,
रहे तू हमेशा मेरी ज़रूरत नहीं मुझे ये बताने की,
यूं निगाहों से नहीं चाहा कभी तुझे,
ये दिल तुझपे निसार था,
ज़िन्दगी पर किसी का हक ये गवारा मुझे न था,
पर पाबंदिया उसूलों से अच्छी होंगी,
ये वक़्त से ज़्यादा तूने बताया था,
रहे उस सोने की तरह जो ढल जाता सांचे में,
रहूँ मैं उस साँचे जैसा ढले जिसकी आस में,
क्योंकि माँ तो नहीं मगर ज़िन्दगी की अंतिम सांस है तू,
आज हक़ीक़त को जाना,
ज़िन्दगी के हर किनारे का साथ है तू,
ये शब्द नहीं जज़्बात हैं मेरे,
वरना दिल-ए फ़क़ीर क्या जाने,
मेरी मुस्कान का राज़ है तू।

5.सदिया गुजर गयी किसी को अपना बनाने में,
मगर एक पल भी न लगा उन्हें हमसे दूर जाने में…
लोगो की साजिशों का रंग उनपे ऐसा छाने लगा,
के उसके बाद तो हम उन्हें अपने दुश्मन नज़र आने लगे….
हम फिर भी हस्ते रहे उनके जुल्मों को सह कर भी,
धीरे धीरे उनके सितम सह कर हमें मजा आने लगा……..
जब थक गए हमारी रूह तक को तड़पा कर वों,
तब वो धीरे धीरे हमसे दूर जाने लगे……
ये गम तन्हाई दर्द और यादोँ के साये,
ये सब तोहफ़ा हमनें उनसें ही है पाए….
मेरी ग़लती सिर्फ़ इतनी सी थी के मैं वफ़ादार निकला,
जितने दिल से की उनकी मोहब्बत में उतना ही बड़ा गुन्हेगार निकला….

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