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बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को विरासत में मिली सिद्धि

बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को विरासत में मिली सिद्धि

बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के बारे में अब हर कोई जानना चाहता है। कोई इसे कला बता रहा है तो कोई जादू टोना और अंध विश्वास से जोड़ रहा है। हकीकत जो भी हो पर वर्तमान में छतरपुर जिले के छोटे से गढ़ा की पहचान दुनियाभर में बागेश्वर धाम और पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नाम से हो रही है। पीठाधीश्वर बागेश्वर धाम महाराज लोगों से पूछे बिना ही उनके मन की बात जान लेते हैं, उसे पर्चे पर भी लिख देते हैं। उनके दादा गुरु भगवान दास गर्ग भी लोगों के मन की बात जान लेते थे।

पिछले दिनों नागपुर की संस्था ने जब उन्हें चुनौती दी तो उन्होंने छत्तीसगढ़ के रायपुर में देशभर के मीडियाकर्मियों के सामने खुद को केवल सनातन के लिए काम करने और विरासत में मिली शक्ति का ही दंभ भरा। हालांकि, कथा के साथ अपने विवादित बयानों से भी सुर्खियां बटोरते रहे धीरेंद्र शास्त्री को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है।

छतरपुर में गढ़ा गांव में बालाजी मंदिर को ही बागेश्वर धाम कहते हैं। बालाजी मंदिर में ही दादा गुरु भगवान दास गर्ग की समाधि है। बताया जाता है पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दादा गुरु भी हर मंगलवार और शनिवार को दिव्य दरबार लगाते थे। धीरेंद्र शास्त्री नौ वर्ष की उम्र से दादा गुरु के साथ मंदिर में जाते थे। वे उन्हें ही अपना गुरु संन्यासी बाबा कहते हैं। बागेश्वर धाम में जो लोग बालाजी महाराज के समक्ष अर्जी लगाते हैं, वे ओम बागेश्वराय नमः मंत्र का जाप कर नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर बांधते हैं और दिव्य दरबार के लिए टोकन लेते हैं।

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