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Global Warming: दलाई लामा बोले- ग्लोबल वार्मिंग बड़ी समस्या, बौद्ध ग्रंथों में इससे पृथ्वी नष्ट होने का उल्लेख

Global Warming: दलाई लामा बोले- ग्लोबल वार्मिंग बड़ी समस्या, बौद्ध ग्रंथों में इससे पृथ्वी नष्ट होने का उल्लेख

Global Warming: दलाई लामा बोले- ग्लोबल वार्मिंग बड़ी समस्या, बौद्ध ग्रंथों में इससे पृथ्वी नष्ट होने का उल्लेख ग्लोबल वॉर्मिंग आज बड़ी समस्या है। बौद्ध ग्रंथों में अलग-अलग कल्पों के आग-पानी आदि से पृथ्वी के नष्ट होने का उल्लेख मिलता है। जिस तरह से गर्मी बढ़ रही है, वह पृथ्वी के आग से नष्ट होने का संकेत है।

धीरे-धीरे इतना तापक्रम होगा कि गर्मी की वजह से यह पृथ्वी नष्ट होगी। जब हम इन संभावनाओं को समझते हैं तो हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और स्नेह की भावना रखनी चाहिए। कोरियाई बौद्ध संघ के अनुरोध पर तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने मैक्लोडगंज स्थित बौद्ध मठ में प्रवचन के दौरान यह बात कही।

दलाई लामा ने कहा कि आजकल राजनीति के माध्यम से मजहबों में बहुत ज्यादा आपसी अंतर आ रहे हैं। अफगानिस्तान को आज मजहब में बहुत अधिक राजनीतिकरण से आपसी अंतर आए हैं। यह कतई सही नहीं है। आजकल उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच भी समस्या चल रही है। प्रार्थना करता हूं कि दोनों राष्ट्रों के बीच आपसी समस्याएं ठीक हो जाएं। दुनिया में शांति स्थापना के लिए एशिया में बहुत संभावनाएं हैं। हम सभी को स्वयं में यह प्रेरणा उत्पन्न करनी चाहिए कि जब तक आकाश रहेगा, तब तक हम दूसरों का हित करेंगे।

कहा कि आज दुनिया में हर व्यक्ति शांति की बात करता है, मगर शांति प्राप्ति की हकीकत को नहीं समझने की कोशिश नहीं की जा रही। सभी धर्मों के अलग-अलग सिद्धांत होते हैं, मगर मूल रूप से मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं। जिनका शाश्वत महत्व है। भवचक्र स्वभाव से सिद्ध नहीं है। जिसे भी हम देख रहे हैं, जिस चीज को ग्रहण करते हैं, एक प्रकार से हम उसमें खो जाते हैं।

आंतरिक क्लेश दूर करने को करता हूं बौद्धचित्त और शून्यता का अभ्यास

धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि सभी धर्म परंपराएं समाज के हित का उपदेश देती हैं। हमारे अंदर भरे क्लेशों के कारण हम दूसरों की मदद नहीं कर पाते हैं। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि शून्यता से हटकर कोई दूसरा रूप नहीं है। हमारे अंदर क्लेश की उत्पत्ति वस्तुओं-रूप को देखकर होती है। जब इसके परीक्षण का प्रयास किया जाता है, तब मालूम होता है कि वे स्वभाववश सिद्ध नहीं होती हैं। शून्यता के माध्यम से आसक्ति और बौद्ध चित्त से स्वार्थी चित्त कम होता है। इसलिए मैं नित्य बौद्धचित्त और शून्यता का अभ्यास करता हूं।

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