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मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, अटार्नी जनरल बोले- पिछड़ों की पहचान का राज्यों को है अधिकार

नई दिल्ली। मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, अटार्नी जनरल बोले- पिछड़ों की पहचान का राज्यों को है अधिकार मराठा आरक्षण की वैधानिकता पर चल रही सुनवाई में गुरुवार को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने विधि अधिकारी की हैसियत से संविधान पीठ के समक्ष अपना नजरिया रखा। अटार्नी जनरल ने कहा कि संविधान के 102वें संशोधन से पिछड़ों की पहचान करने और उनके लिए कानून बनाने के राज्यों के अधिकार समाप्त नहीं होते हैं। इस संशोधन में राज्यों को अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) के तहत मिले अधिकारों को नहीं छुआ गया है।

वेणुगोपाल ने कहा, यह कहना गलत होगा कि संविधान के 102वें संशोधन से राज्यों का पिछड़ों की पहचान करने और उन्हें ऊपर उठाने के लिए कानून बनाने का अधिकार समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल मराठा आरक्षण के मामले में सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने अटार्नी जनरल को भी इस मामले में नोटिस जारी किया था। केके वेणुगोपाल ने गुरुवार को अटार्नी जनरल की हैसियत से कोर्ट में पक्ष रखा। वे सरकार की ओर से पेश नहीं हुए थे।

संविधान के 102वें संशोधन के बाद जोड़े गए अनुच्छेद 342-ए व 342-ए (1) के बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि इन अनुच्छेदों में जिस लिस्ट की बात की गई है, वह सेंट्रल लिस्ट है। वह लिस्ट राज्यों में स्थित केंद्रीय संस्थानों और केंद्र के तहत आने वाले उपक्रमों में नौकरी में रखने को लेकर है। वहां नौकरी पर उसी सूची से रखा जाएगा। वह केंद्र की सूची है। ऐसे ही केंद्रीय शिक्षण संस्थानों जैसे आइआइटी आदि में भी केंद्रीय सूची का ही उपयोग किया जाएगा।

केंद्र राज्य सरकार की हर सूची पर निर्भर नहीं होता। कई बार केंद्र और राज्य की सूची में अंतर होता है। इस बारे मे अटार्नी जनरल ने पंजाब की राज्य सूची और पंजाब के बारे में केंद्रीय सूची का हवाला दिया। दोनों सूचियों में शामिल जातियों में अंतर था। उन्होंने कहा कि अुच्छेद 15(4) और 16(4) में केंद्र और राज्य दोनों को पिछड़ों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। इन अनुच्छेदों में संविधान संशोधन के जरिये कोई बदलाव नहीं किया गया है। इसलिए उनमें राज्यों को मिला अधिकार बरकरार है।

वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि एक मामले में अनुच्छेद 14,15,16 और अन्य प्रविधानों का मुद्दा सात न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लंबित है। ऐसे में कोर्ट को इस मामले में सिर्फ मराठा आरक्षण पर विचार करना चाहिए, बाकी चीजों पर नहीं। लेकिन सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि उसने इस मामले में कानूनी प्रश्न तय किए हैं। एक याचिका में संविधान के 102वें संशोधन को भी चुनौती दी गई है। ऐसे में कोर्ट को उस मामले पर भी फैसला देना होगा।

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