Swastika Ban: ऑस्ट्रेलिया में स्वास्तिक पर क्यों लगा बैन, आस्था के प्रतीक चिह्न का हिटलर से क्या है रिश्ता?

Swastika Ban

Swastika Ban ऑस्ट्रेलिया के एक और राज्य में नाजी झंडे को फहराने या स्वास्तिक चिह्न को प्रदर्शित करने पर बैन लगा दिया गया है। ऑस्ट्रेलियाई राज्य न्यू साउथ वेल्स में ऐसा करने पर एक साल जेल या एक लाख डॉलर का जुर्माना हो सकता है। बीते गुरुवार को न्यू साउथ वेल्स के ऊपरी सदन में इससे जुड़ा वो बिल पास हो गया, जिसे बीते अप्रैल में ड्राफ्ट किया गया था। न्यू साउथ वेल्स इस तरह का बैन लगाने वाला ऑास्ट्रेलिया का दूसरा राज्य है। इससे पहले बीते जून महीने में विक्टोरिया राज्य में भी स्वास्तिक के प्रदर्शन पर बैन लगाया जा चुका है।

ऑस्ट्रेलिया में स्वास्तिक पर बैन के पीछे की कहानी क्या है? आखिर स्वास्तिक का नाजियों से क्या संबंध है? तो क्या अब ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हिन्दू धर्म के लोगों को भी जेल हो सकती है? क्या सिर्फ हिन्दू धर्म में ही स्वास्तिक की पूजा होती है? आइये जानते हैं…

न्यू साउथ वेल्स में स्वास्तिक पर बैन कब से लागू हो जाएगा?

बीते नौ अगस्त को ऑस्ट्रेलिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य न्यू साउथ वेल्स के निचले सदन में स्वास्तिक पर बैन का बिल पास हुआ। दो दिन बाद ऊपरी सदन ने भी इस बिल को पास कर दिया। इसके साथ ही इस बिल ने कानून का रूप ले लिया है। न्यू साउथ वेल्स के इस कदम को नाजी प्रतीक के खिलाफ एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्यों में नाजी स्वास्तिक पर बैन लग चुका है।

क्या ऑस्ट्रेलिया के दूसरे राज्य भी इस तरह की तैयारी कर रहे हैं?

 

विक्टोरिया और न्यू साउथ वेल्स के बाद क्विंसलैंड और तस्मानिया में भी इसी तरह के कदम उठाए जाने की चर्चा है। अगर ऐसा होता है तो ऑस्ट्रेलिया के आठ में से चार राज्यों में नाजी प्रतीकों का प्रदर्शन बैन हो जाएगा। इन चार राज्यों में ही ऑस्ट्रेलिया की अधिकांश आबादी रहती है।

स्वास्तिक को बैन करने की वजह क्या है?

न्यू साउथ वेल्स के ज्यूइश बोर्ड ऑफ डेप्यूटीज के CEO डेरेन बार्क का कहना है कि स्वास्तिक नाजियों का प्रतीक है। यह हिंसा को दिखाता है। कट्टरपंथी संगठन भर्ती के लिए भी इसका इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे राज्य में काफी समय से इसके प्रदर्शन पर रोक लगाने की बात चल रही थी। अब अपराधियों को सही सजा मिलेगी।

आखिर स्वास्तिक का नाजियों से क्या संबंध है?

1920 में हिटलर ने स्वास्तिक को जर्मनी के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया था। इसके साथ ही हिटलर की नाजी पार्टी के झंड़े में भी इसे शामिल किया गया। इसके लिए नाजी पार्टी के लाल रंग के झंडे में सफेद वृत्त बना था। इस वृत्त में काले रंग से स्वास्तिक का निशान था। ये स्वास्तिक 45 डिग्री पर हुआ था। इसे हकेनक्रेज कहा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ये चिह्न यहूदी-विरोध, नस्लवाद, फासीवादी और नरसंहार से जुड़ चुका था।

दूसरा विश्व युद्ध खत्म होते-होते जर्मनी के झंडे वाला स्वास्तिक घृणा और नस्लीय पूर्वाग्रह के प्रतीक के रूप में कलंकित हो चुका था। विश्व युद्ध के बाद यूरोप और दुनिया के दवाब में इस नाजी झंडे और स्वास्तिक जैसे प्रतीक को जर्मनी में भी बैन कर दिया गया था। इसके अलावा फ्रांस, ऑस्ट्रिया और लिथुआनिया में भी इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई।

स्वास्तिक औौर सिंदूर

तो क्या ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोग भी स्वास्तिक का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे?

ऐसा नहीं है। कानून में धार्मिक और शैक्षिक उद्देश्ययों के लिए स्वास्तिक के उपयोग की अनुमति दी गई है। हिन्दू ही नहीं बौद्ध और जैन समुदाय में भी स्वास्तिक एक प्राचीन और पवित्र प्रतीक रहा है।

धार्मिक और नाजी स्वास्तिक में कोई फर्क है क्या?

धार्मिक इस्तेमाल होने वाला स्वास्तिक बनावट और अर्थ दोनों ही मामले में नाजी के स्वास्तिक यानी ‘हकेनक्रेज’ से अलग है। हिंदुओं में इस्तेमाल होने वाले स्वास्तिक के चारों कोनों में चार बिंदु होते हैं। ये चार बिंदु चार वेदों का प्रतीक हैं।

हिंदू धर्म में यह शुभ और तरक्की का प्रतीक माना जाता है। जैन धर्म में इसे सातवें तीर्थंकर का प्रतीक माना जाता है। बौद्ध धर्म स्वास्तिक को बुद्ध के पैरों या पदचिन्ह के निशान का प्रतीक मानता है। किसी किताब के शुरू और आखिरी पन्ने पर इसे बनाया जाता है।

धार्मिक स्वास्तिक में पीले और लाल रंग का इस्तेमाल किया जाता है जबकि नाजी झंडे में सफेद रंग की गोलाकार पट्टी में काले रंग का स्वास्तिक बना है। नाजी संघर्ष के प्रतीक के तौर पर इसका इस्तेमाल करते थे।

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