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कजलियां पर्व जिसे भुजरिया भी कहा जाता है, जानिए क्यों मनाया जाता है यह त्यौहार

कजलियां पर्व जिसे भुजरिया भी कहा जाता है, जानिए क्यों मनाया जाता है यह त्यौहार

जबलपुर। कजलियां क्यों मनाई जाती हैं इसे भुजरिया भी कहा जाता है।  बुंदेलखंड का कल्चर भी अपने आप में निराला और पुरातनकालीन है। जिसकी मान्यताएं जितनी धार्मिक हैं उतनी ही सामाजिक और वैज्ञानिक भी। राखी के दूसरे दिन मनाए जाने वाले कजलियां पर्व जिसे भुजरिया नाम से भी जाना है को इस बार 19 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाएगा।
ज्योतिर्विद जनार्दन शुक्ल के अनुसार कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से मायके आई तो सारे नगरवासियोंं ने कजलियों से उनका स्वागत किया था।
ये भी है कहानी
महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएँ बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से सुनी व समझी जाती है। महोबे के राजा के राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दि थी।
राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी-सहेलियन के साथ गई थी। राजकुमारी कौ पृथ्वीराज हाथ न लगाने पावे इसके लिए राज्य के बीर-बाँकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराकरम दिखलाया था। इन दो बीरों के साथ में चन्द्रावलि का ममेरा भाई अभई भी उरई से जा पहुँचे।
कीरत सागर ताल के पास में होने वाली ये लड़ाई में अभई बीरगति को प्यारा हुआ, राजा परमाल को एक बेटा रंजीत शहीद हुआ। बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल का लड़का ब्रह्मा, जैसें बीर ने पृथ्वीराज की सेना को वहां से हरा के भगा दिया। महोबे की जीत के बाद से राजकुमारी चन्द्रवलि और सभी लोगों अपनी-अपनी कजिलयन को खोंटने लगी। इस घटना के बाद सें महोबे के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियां का त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है।
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