प्रदेश

आप पार्टी को कोर्ट से राहत नहीं, अगली सुनवाई सोमवार को

news24you

नई दिल्ली। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी को दिल्ली से भी तगड़ा झटका लगा है। विधायक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आप अपनी मर्जी से तय कर लेते हैं कि आपको चुनाव आयोग के सामने नहीं जाना, जब आप चुनाव आयोग के बार-बार बुलाने के बाद भी नहीं जा रहे तो वो क्या करेंगे? चुनाव आयोग आपको बार-बार बोलता रहा कि अपना जवाब दें। हाई कोर्ट ने ‘आप’ को फटकार लगाते हुए कहा कि आपने कोर्ट में कोई स्टे नहीं दिया फिर भी चुनाव आयोग से कहा कि हाई कोर्ट ने रोक लगाई है, क्या ये सही है? क्या हाई कोर्ट ने रोक लगाई थी? हाईकोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई थी। आम आदमी पार्टी को कोर्ट से कोई भी राहत नहीं मिली है। इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
‘आप’ की कोर्ट में दलील
सुनवाई के दौरान आम आदमी पार्टी के वकील ने दलील रखी कि हमने चुनाव आयोग को जवाब दिया और अपने जवाब में बताया कि हमारी बात पूरी तरह से नहीं सुनी जा रही। आयोग को इस बात कि पड़ताल करनी चाहिए कि आरोप कितने सही हैं, इसके बाद हमने दिल्ली हाइ कोर्ट में भी याचिका लगाई थी। चुनाव आयोग को बताया कि जब तक हाई कोर्ट फैसला नहीं करता तब तक सुनवाई न हो।
इससे पहले आयोग इसे लेकर अपनी सिफारिश आज शाम तक राष्ट्रपति को भेज चुका है। हालांकि, इसे लेकर चुनाव आयोग ने कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है लेकिन मीडिया में इस तरह की खबरें आने के बाद दिल्ली का राजनीति गर्मा गई है। जहां आप ने आयोग पर भेदभाव का आरोप लगाया है वहीं भाजपा ने कहा है कि चोर की दाढ़ी में तिनका।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आयोग ने अपने फैसले में सभी 20 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की है। हालांकि, इसे लेकर कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है और ना ही कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के सूत्रों को कहना है कि मामले में सुनवाई पूरी नहीं हुई है और ऐसे में फैसला कैसे आ सकता है। अगर यह फैसला लिया गया है उसे चुनौती दी जाएगी।
आप दिल्ली के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि अभी तक हमें कोई लिखित में जानकारी नही मिली है। मगर मीडिया के माध्यम से ये जानकारी मिल रही है। चुनाव आयोग में लाभ के पद मामले में सुनवाई अभी हुई ही नही है। अभी तक विधायकों को अपना पक्ष रखने का मौका नही दिया है। हमारे विधायकों ने कोई लाभ नही लिया है।
सौरभ भारद्वाज ने आगे कहा कि लाभ का पद वो होता है कि कोई उसका लाभ ले। हर विधानसभा में लाखों आदमी रहते है, एक आदमी भी कहे की 20 विधायको में से किसी एक ने भी गाड़ी, बंगला, नौकर लिया हो। चुनाव आयोग किसी और के इशारे पर काम कर रहा है। विधायकों को कोई सफाई का मौका नहीं दिया। फैसला लिखित में आएगा तब पूरी बात रखेंगे। अदालत जाने का भी रास्ता खुला है।
आप ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि विधायकों को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला। इस आरोप की पड़ताल की जा सकती है कि चुनाव आयोग ने कितनी बार जवाब देने के लिए नोटिस भेजा। इस एंगल से भी स्टोरी कराएं।
दरअसल चुनाव आयोग मान रहा है कि आप के 20 विधायक संसदीय सचिव हैं, जो लाभ का पद है। ऐसे में आयोग ने AAP विधायकों की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि विधायकों की ओर से इस मामले की सुनवाई रोक देने वाली उनकी याचिका खारिज की जाती है। बता दें कि चुनाव आयोग पिछले साल 24 जून को इन विधायकों की याचिका खारिज कर चुका है।
इस पर AAP विधायकों ने याचिका दी थी कि जब दिल्ली हाई कोर्ट में संसदीय सचिवों की नियुक्तियां ही रद हो गई हैं तो ऐसे में ये केस चुनाव आयोग में चलने का कोई मतलब नहीं बनता।
गौरतलब है कि 8 सितंबर 2016 को हाइ कोर्ट ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद कर दी थी। इस मामले में चुनाव आयोग लगभग पिछले साल ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर चुका है।
बता दें कि आप विधायकों के पास संसदीय सचिव का पद 13 मार्च 2015 से 8 सितंबर 2016 तक था। इसलिए 20 आप विधायकों पर केस चलेगा केवल राजौरी गार्डन के विधायक जरनैल सिंह को छोड़कर क्योंकि वह जनवरी 2017 में विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं।
क्या है मामला
आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 19 जून को एडवोकेट प्रशात पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद करने के लिए आवेदन किया था। राष्ट्रपति ने शिकायत चुनाव आयोग भेज दी थी। इससे पहले मई 2015 में आयोग के पास एक जनहित याचिका भी डाली गई थी।
आप के संयोजक व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के बाद उन्हें कोई लाभ नहीं दिया गया है। इसी के साथ संसदीय सचिवों को प्रोटेक्शन देने के लिए दिल्ली सरकार ने एक विधेयक पास कर राष्ट्रपति के पास भेजा था। मगर राष्ट्रपति ने सरकार के इस विधेयक को मंजूरी देने से इन्कार कर दिया था। इस विधेयक में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया था, क्योंकि इन संसदीय सचिवों की नियुक्ति बिना उपराज्यपाल की अनुमति के की गई थी।
कहां फंसा है पेंच?
1. दिल्ली सरकार ने 21 विधायकों की नियुक्ति मार्च 2015 में की, जबकि इसके लिए कानून में ज़रूरी बदलाव कर विधेयक जून 2015 में विधानसभा से पास हुआ, जिसको केंद्र सरकार से मंज़ूरी आज तक मिली ही नहीं।
2. अगर दिल्ली सरकार को लगता था कि उसने इन 21 विधायकों की नियुक्ति सही और कानूनी रूप से ठीक की है, तो उसने नियुक्ति के बाद विधानसभा में संशोधित बिल क्यों पास किया ?
इन 20 विधायकों पर लटकी है तलवार
1. आदर्श शास्त्री, द्वारका
2. जरनैल सिंह, तिलक नगर
3. नरेश यादव, मेहरौली
4. अल्का लांबा, चांदनी चौक
5. प्रवीण कुमार, जंगपुरा
6. राजेश ऋषि, जनकपुरी
7. राजेश गुप्ता, वज़ीरपुर
8. मदन लाल, कस्तूरबा नगर
9. विजेंद्र गर्ग, राजिंदर नगर
10. अवतार सिंह, कालकाजी
11. शरद चौहान, नरेला
12. सरिता सिंह, रोहताश नगर
13. संजीव झा, बुराड़ी
14. सोम दत्त, सदर बाज़ार
15. शिव चरण गोयल, मोती नगर
16. अनिल कुमार बाजपई, गांधी नगर
17. मनोज कुमार, कोंडली
18. नितिन त्यागी, लक्ष्मी नगर
19. सुखबीर दलाल, मुंडका
20. कैलाश गहलोत, नजफ़गढ़

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button