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शिवराज-वीडी की सक्रियता की मिसाल, तथाकथित निष्पक्ष निंदकों के पास प्रशंसा के शब्दों का अकाल

उत्तराखंड हादसा: मिसाल बनी शिवराज-वीडी की सक्रियता

उत्तराखंड में तीर्थयात्रियों से भरी बस के हादसे का शिकार होना बेहद दुखद था। नियति को कौन टाल सकता है, किंतु इस तरह के हादसे के बाद सरकार और जनप्रतिनिधियों की परीक्षा की घड़ी में डटकर मुकाबला करने की प्रशंसा भी भला क्यों नहीं? आज यह सवाल मन मे उठना स्वाभाविक है।

देश मे ऐसे हादसे पहले भी दुखद रहे हैं, ऐसे हादसे न हों यह भी सरकार की जिम्मेदारी है पर हादसे के बाद एक सरकार का मुखिया, दूसरा संगठन का शीर्ष हादसे को व्यक्तिगत क्षति मान कर फौरन दुःखी परिवारों को राहत के लिए जुट जाए यही महत्वपूर्ण होता है। अपने प्रदेश के नागरिकों और उनके परिजनों के लिए एक मुख्यमंत्री और एक सांसद रात भर जागते रहें, मदद के लिए हर सम्भव प्रयास में जुटे रहें तो यह मिसाल भी बनना लाज़मी है।

उत्तराखंड की गहरी खाई में दुर्घटनाग्रस्त बस के श्रद्धालुओं की जान नहीं बचाई जा सकी, लेकिन उस व्यक्ति के परिवार के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन इस संकट में ज्यादा जरूरी था।

किसी परिवार का व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो अपनी जान गंवा बैठे वह भी सैकड़ों किलोमीटर दूर, तब उस परिवार के साथ उस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि तथा प्रदेश की सरकार साथ खड़े नजर आएं तो यह न सिर्फ बज्रपात वाले परिवार के लिए बड़ी ढांढस का काम करता है। वरन जनता के प्रति कर्तव्य का भी बोध कराता है।

कम ही सुना जाता है कि देर रात घटी दुर्घटना की खबर लगते एक मुख्यमंत्री, एक पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष, क्षेत्र का मंत्री अर्धरात्रि अपनी जनता की खातिर घटना स्थल पर पहुंचने का ख्याल भी मन मे लाता है वो भी ऐसे स्थान पर जिसे देखने मात्र से किसी का दिल सिहर उठे पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सत्ताधारी राजनीति दल के अध्य्क्ष और सांसद विष्णुदत्त शर्मा संकट की इस घड़ी में बिना समय गंवाए सैकड़ों किलोमीटर दूर पहुंचकर उन 28 दुःखी परिवारों के साथ एक अभिभावक, एक पितृत्व, एक सच्चे मित्रवत, एक सफल नेतृत्वकर्ता का फर्ज निभाये तो यह न सिर्फ नजीर बनती है बल्कि उन परिवारों के मुखिया बुजुर्ग के लिए श्रवण कुमार जैसा अहसास कराती है जिसने कम से कम पीड़ितों के प्रिय का अंतिम समय मे अंतिम दर्शन कराने का पुण्य कार्य किया।

सवाल यह कि इस हादसे की खबर पर दुख तो सभी का सोशल मीडिया पर झलका, पर किसी विपक्षी से प्रदेश के राजतंत्र के मुखिया और संगठन के सिरमौर के लिए दो शब्द प्रशंसा के नहीं निकल सके।

जनता के हितकारी बनने वाले तमाम स्वतंत्र टीका टिप्पणीकार की रहस्यमयी चुप्पी इनकी मानसिकता का दोगलापन उजागर करने के लिए काफी है।

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के इन परिवारों का शोक किसी मुआवजे से कम नहीं किया जा सकता। जरूरी था घोर अंधेरे में अपने परिजन का परिवार के साथ कम से कम अंतिम वक्त उसकी पार्थिव देह के दर्शन करना। जिसे सीएम शिवराज तथा वीडी शर्मा ने जिस गम्भीरता आत्मीयता तथा दुःख में भागीदार बन कर समझा वह विलक्षण कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

सरकार और उसके नेतृत्व की परीक्षा की इस घड़ी में 28 परिवारों पर आपदा के घनघोर वक्त में जिस भूमिका को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने निभाया वह जनता के लिए एक जनसेवक की भूमिका का उदाहरण बनेगा। हादसे न हो यह जरूरी है पर दुर्घटना का नाम ही दुर्घटना इसलिये है क्योंकि यह घटना का आंकलन न तो कोई कर पाया न ही कर सकेगा।

हम अपने प्रदेश में निश्चिंत होकर रहते हैं, हमारे प्रिय जन हमसे दूर जाते हैं, किसी संकट की घड़ी में हमारी मदद कौन करेगा? यह विचार हमारे मन मे स्वाभाविक रूप से आता है। तब एक सच्चे नेता, एक सफल नेतृत्व की जिम्मेदारी तय होती है। इस जिम्मेदारी को वक्त पर निभाने का जो स्तुत्य कार्य प्रदेश के शासन और संगठन के मुखिया ने किया उसके लिए उन्हें जितना भी साधुवाद दिया जाए कम है।

शायद यही कारण है जो कुछ जनप्रतिनिधियों को कुछ अन्य जनप्रतिनिधित्व से अलग बनाता है। हाल ही में रूस यूक्रेन युध्द में भी यही देखने मिला जब पूरी सरकार अपने लोगों के लिए दिनरात एक कर नागरिकों को सकुशल देश लाने में कामयाब रही तो वहीं कोरोना के वक्त भी नेतृत्व की परीक्षा को राजतंत्र ने पास किया। तमाम देशों से भारतवासी को सुरक्षित निकाला गया।

सिर्फ छोटे से हमारे शहर कटनी की बात ही करें तो यहां भी एक बेटी यूक्रेन के युध्द हालात में फंसी ओर जैसे ही इसकी खबर हमारे सांसद को लगी तत्काल वह इस बेटी की सुरक्षित वापसी के लिए जुट गए।

कतिपय आलोचकों के शब्दकोश में हमेशा जो घिनोने शब्द उछाल मारकर बाहर निकलते हैं आज उसी शब्दकोश में दो अच्छे शब्दों का अकाल जैसा पड़ा है। यह बताता है कि कतिपय आलोचक सिर्फ आलोचक या तथाकथित निंदक की भूमिका में नहीं वरन एक ऐसे एजेंडे पर आलोचनाओं को बखान कर चंद निगेटिविटी से लबरेज लोगों की वाहवाही के लिए अपने कुटिल मन के व्याख्यान से वाहवाही लूटने की कोशिश करते रहते हैं, सोशल मीडिया पर चंद वाह वाह की टिप्पणी या अंगूठे के निशान को गिनते रहते हैं पर हकीकत यह कि ऐसे एकपक्षीय आलोचकों ने शायद आज तक किसी की मदद भी न की हो।

वक्त कब किसके साथ दुखों का पहाड़ ले आये यह कहा नहीं का सकता, पर इस दुख को सहने की क्षमता ईश्वर देता है, तभी हम ईश्वर पर अक्षुण्ण विश्वास रखते हैं, ऐसे में अगर हमारे साथ कोई साथी भी दुख का भागीदार बने, यथाशक्ति हमारी मदद करे तो वही हमारे लिए उस कठिन वक्त में ईश्वरतुल्य होता है।

शिवराज-वीडी की सक्रियता की मिसाल, तथाकथित निष्पक्ष निंदकों के पास प्रशंसा के शब्दों का अकाल

सम्भव है इस विचार को विचारधारा से प्रेरित बता कर गम्भीरता से न लिया जाए वैसे हम भी कतिपय लोगों से यही उम्मीद करते हैं कि व इसे एक विचारधारा से प्रेरित ही लें तो बेहतर किंतु यह जरूर याद कर लें कि 24 घन्टे में पड़ोसी जिले के दो दर्जन परिवार पर आई घोर बिपदा के वक्त जिस जज्बे का परिचय हमारे नेतृत्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा मंत्री ब्रजेन्द्र प्रताप के साथ उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी तथा उनके दर्जनों अधिकारियों ने दिया उसके लिए न सिर्फ शोकाकुल परिवार वरन प्रदेश के हर नागरिक को गर्व है।

शिवराज-वीडी की सक्रियता की मिसाल, तथाकथित निष्पक्ष निंदकों के पास प्रशंसा के शब्दों का अकाल

आज खजुराहो एयरपोर्ट पर दुर्घटना में दिवंगत के शव के बॉक्स को उठा कर एम्बुलेंस तक पहुंचाते हमारे सांसद वीडी शर्मा का छायाचित्र आया वह एक जनसेवक की जनता के प्रति भावना को प्रगट करने के लिए काफी था। इसे लाखों लोग देखेंगे, मन मे तरह तरह के विचार लाएंगे, इन्ही विचारों से फिर तथाकथित आलोचकों के कुलित विचार भी जन्म लेंगें, फिर मानसिक दिवालिया नैरेटिव सेट कर खूब सोच विचार कर इसे अपने गिरवी रखे विचारों में उतार कर कतिथ अभिव्यक्ति प्रगट करेंगे। इनसे उम्मीद भी यही है। पर यह जान लें कि जो बिना विचलित हुए पंक्तिबद्ध अग्रसर रहता है वही मंजिल तक पहुंचता है। रास्ते मे खड़े विचारहीन भिक्षुक सदैव दूसरों की पंक्ति छोटी करते करते गुम ही हो जाते हैं। कलुषित विचारों को सिर्फ नकरात्मक रूप से प्रगट करना तभी बेहतर होता है जब इसे सकारात्मक कार्य होने पर भी शब्दों में पिरोया जाए।

बहरहाल यही तो प्रजातंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का वह रूप है जिसमे सिर्फ निंदा को निष्पक्ष माना जाता है। क्रियाशील ऐसे निंदकों को हमेशा साथ रखता है।

(यह निजी लेख भाजपा मीडिया प्रभारी आशुतोष शुक्ला के फेसबुक वॉल से लिये गए हैं)

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