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अहमद को हराना अमित शाह का लक्ष्य था ही नहीं, उनका खेल तो कुछ और था!

अहमद को हराना अमित शाह का लक्ष्य था ही नहीं, उनका खेल तो कुछ और था!

राजनीतिक डेस्क। गत 8: 9 अगस्त की रात को गुजरात से लेकर दिल्ली तक हलचल तेज थी, दो सियासी योद्धाओं की रणनीति की जंग हो रही थी। हर चाल के पीछे एक चाल थी। जो ऊपर से दिख रहा था अंदर से वैसा नहीं था। गुजरात राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने तीसरा उम्मीदवार उतार कर अहमद पटेल की राह रोकने की कोशिश की। अहमद पटेल सोनिया गांधी के खासम खास हैं, राजनीतिक सलाहकार हैं, उनकी हार पार्टी कैसे बर्दाश्त करती है। अमित शाह ने पटेल की राह में इतने कांटे बो दिए कि पटेल और कांग्रेस को पूरा जोर लगाना पड़ गया। कांग्रेस ने जितनी ताकत लगाई वो उसकी हद थी। पटेल की जीत को कांग्रेस अपनी जीत समझ रही है। लेकिन जैसा कि कहते हैं कि लार्जर पर्सपेक्टिव में देखें तो क्या ये वाकई कांग्रेस की जीत है।
अमित शाह जान रहे थे कि अहमद पटेल की जीत के लिए कांग्रेस अपना पूरा जोर लगा देगी। ऊपर से कांग्रेस को यही दिख रहा था कि केवल पटेल को रोकने के लिए बीजेपी ये सारा काम कर रही है। लेकिन थोड़ा पीछे जाकर पुराने घटनाक्रम को देखें तो समझ आता है कि कांग्रेस अभी तक शाह की रणनीति को समझ ही नहीं पाई है। कांग्रेस से शंकर सिंह वाघेला ने इस्तीफा दिया। कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा दिया। राज्यसभा चुनाव के ठीक पहले इन इस्तीफों से पटेल की राह मुश्किल हुई। कांग्रेस ने ये समझने में देर नहीं लगाई कि ये सारा खेल शाह के इशारे पर हो रहा है। इसके बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति बनाई। पटेल की जीत के लिए अपने ही 44 विधायकों को एक तरह से अगवा कर लिया।
ये सारी बातें शाह को पता थी, कि कांग्रेस इसी तरह का कोई कदम उठाएगी। गुजरात की एक सीट या फिर कहें कि सोनिया के खास पटेल की जीत के लिए कांग्रेस ने वो कर दिया जिसे जापानी भाषा में हाराकीरी कहते हैं, यानि आत्मघाती कदम उठाना। गुजरात बाढ़ की त्रासदी झेल रहा था, मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने बाढ़ प्रभावित बनासकांठां में 5 दिन तक डेरा डाल दिया। ये इलाका कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। ये कांग्रेस की पहली हार थी। जो उसे दिखाई नहीं दी। शाह ने कांग्रेस को भरमाने और राज्य में उसकी ताकत को आजमाने के लिए खुद राज्यसभाके लिए नामांकन भरा। शाह की योजना ये थी कि कांग्रेस उनके नामांकन को पटेल की हार से जोड़कर देखे, कांग्रेस ने यही किया वो शाह की चाल में फंसती चली गई।
पटेल के साथ शाह की पुरानी अदावत है। इसलिए व्यापक चर्चा इस बात को लेकर हुई कि पटेल को हराने के लिए शाह पूरा जोर लगा रहे हैं। उनके इशारे पर ये सारा काम हो रहा है। शाह को जानने वालों का मानना है कि शाह ने कभी पटेल को हराने के लिए रणनीति बनाई ही नहीं अगर वो चाहते तो आसानी से पटेल के खिलाफ रणनीति बनाकर उनको मात दे सकते थे। लेकिन उन्होंने राज्य में कांग्रेस की ताकत को परखना था। वो उन्होंने देख लिया है और अब राज्य में अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति तैयार करेंगे। ये है वो उद्देश्य जिसको पूरा करने के लिए शाह ने ये सारा खेल रचा है। कांग्रेस अभी तक ये समझ नहीं पाई कि अहमद पटेल तो जीत गए लेकिन गुजरात एक बार फिर से उनके हाथ से निकल गया है।

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